26 October 2015

तुम भी और ज़िन्दगी भी - फ़ासलों से गुज़रते रहे

बस  वो पल  जब तुम्हे देखा था पहली बार।
लगा -   हाँ तुम ही तो हो जिसे सदियों से खोज रही हूँ  ……
फिर मेरी आँखे - तुम्हारे ख़्वाब … मेरा दिल - तुम्हारी बात
लेकिन, तुम तो कभी थे ही नहीं  …… कहीं थे ही नहीं  ……

उलझी सी हूँ …… टूटी सी हूँ ……
फिर भी ,बैठी हूँ-  न जाने क्यों -  अब भी -     इंतज़ार है   ……

मगर तुम हो  और  ये  ज़िन्दगी है कि  बस -   फ़ासलों  से गुज़रते   रहे



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