थी ख्वाहिशें चुलबुली,
न जाने क्यूँ मचल पड़ी।
हसरतों को थामकर ,
बेसबब निकल पड़ी।।
तेरे ही साये थे ,
आँखो मे जो छाए थे ।
मोम थी, सांसो से
मोम थी, सांसो से
बेसबब पिघल पड़ी।
बेघर और आवारा सी,
हो गई मैं हवाओं सी,
जाने कहाँ, क्या पता
बेसबब चल पड़ी।
लहरों सी गीली हूँ ,
अश्कों सी भीगी हूँ ,
ज़िन्दगी रेत सी हाथ सी
बेसबब फिसल पड़ी।
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