तन्हा अकेली यूँ चलती रहूँगीं
इस आसमां के तले।
जाने कहॉं पे होगी सहर ये ,
शाम जाने ये कहॉं ढले।
किश्तों में चलते हैं दिन धीरे धीरे ,
जाने कितनी ही कहानी लिए ,
आए जो काली रातें तो
इन आँखो में सपनों का दिया जले।
जिन रास्तों को न कोई मंज़िल मिले,
तो चले फिर वो किसके लिए।
कह दो ख़ुदा से,
राहों को मेरी, कोई तो मंज़िल मिले।
समुंदर है मेरा , प्यासीं हूँ फिर भी,
बस एक क़तरे के लिए।
कह दो क़िनारों से
बहती इन धारों से बन के दरिया वो मुझमें पले
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