13 October 2015

मैने चंदा पे झाड़ू फेर दी।

चाँद - शीतल सा चाँद , मामा चाँद , बूढ़ी झाड़ू वाली अम्मा का चाँद!!!
याद है अब तक जब बचपन में माँ चाँद की कहानी सुनाती थी कि चाँद शीतल सा प्यारा सा क्यूँ हुआ और वो सूरज दहकता और गर्म सा क्यूँ भला ???
माँ- अपनी दादी को यही कहते थे हम सब - बताती थी सूरज और चाँद दो भाई थे - खाना खाने का न्योता मिला उन्हें किसी के घर।
पूरी और सब्जी मिली थी खाने को - सूरज ने अपनी माँ का बिलकुल न सोचा -याद ही नहीं आई उसे , खाना खा लिया।
चाँद - चाँद तो दयालु था , माँ से बहुत प्यार करता था। हाँ, सूरज भी करता था!! मगर चाँद ने खुद थोड़ा खाया और थोड़ा खाना माँ के लिए ले आया।
घर पहुँचे - चाँद ने माँ को छुपा के लाया हुआ खाना दे दिया - सूरज ने कुछ न दिया।
माँ गुस्सा हुई - सूरज को श्राप दे दिया - तुझ में दया माया कुछ नहीं है - जा तू हमेशा जलता रहेगा और चाँद बड़ा दयालु है - ये सब को शीतलता देगा!!!
कैसी कैसी किवदंतियाँ और कितनी सारी किवदंतियाँ !
वो कहानी भी याद है जो अपनी बेटी की NCERT की तीसरी कक्षा की रिमझिम किताब में पढ़ी थी और कितनो की जुबानी सुनी भी है! साझा कर रही हूँ वही कहानी (with due acknowledgement!) आप सब के साथ !
बड़ी पुरानी बात है , उन दिनों एक बूढ़ी औरत धरती पर रहा करती थी और आसमान तब इतना नीचे हुआ करता था कि हाथ बढ़ा कर छू सकते थे। अम्मा अपने सारे काम खुद ही करती मगर जब जब बूढ़ी अम्मा झाड़ू लगाती -आसमान आकर उनकी कमर से टकराता !
अम्मा कुछ न कहती -मगर आसमान हर रोज़ बिना नागा अम्मा को परेशां करता ज़रूर! उसे इस चुहल में बड़ा मज़ा जो आता।
बस ऐसे ही एक दिन जब अम्मा का पानी भरते वक़्त किसी झगड़ा हुआ था - चिढ़ी सी हुई थी उस रोज़ और आसमान ने आदतन फिर परेशां करना शुरू किया - अबके अम्मा बिफर गई - उठाई झाड़ू और दे मारी ज़ोर से आसमान को !! वो हटा और फिर टकराने लगा !
अम्मा को बड़ा गुस्सा आया, जैसे आसमान नीचे आया - ये ज़ोर से दे मारी झाड़ू !!
आसमान कहाँ कम था - उसने अम्मा की झाड़ू पकड़ ली!! अम्मा ने झाड़ू का एक सिरा पकड़ा था और आसमान ने दूसरा ।
अम्मा के पास इकलौती ही तो झाड़ू थी - बोलती रह गई -झाड़ू छोड़ने को -आसमान ने झाड़ू न छोड़ी !
आसमान ऊँचा , ऊँचा और ऊँचा उठता चला गया। धरती तो कहीं पीछे छूट गई थी।
रास्ते में चाँद आया - अम्मा वहीँ उतर गई - अपनी झाड़ू सहित!
बस, तब से अम्मा वहीँ है - कहीं न गई - जब भी पूरा चाँद निकले गौर से देखना - झाड़ू वाली अम्मा अब भी दिखती है वहीँ।
मेरी बेटी मुझसे अक्सर पूछती थी की कि जब नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी ने जब पहला कदम रखा था चाँद पर - अम्मा उन्हें कहीं न मिली क्यों नहीं ?
उसके बाद तो कई बार कई यान - इंसानो सहित और इंसानो बिना गए और अम्मा को लिए बैगर लौट आये, भला क्यूँ ??
मैंने बेटी को बताया था astronauts को चाँद सुन्दर न लगा कतई, शीतल भी न लगा था !
मैंने बताया था बेटी को- अंतरिक्ष यान में वो लोग जाने क्या क्या उठा कर लाये वहां से ! कितने किस्म के पत्थर,छोटे बड़े पत्थर !! कहा कि -ये बड़े बड़े गड्ढे मिले उन्हें वहां ! हाँ, मगर जब चलो तो बड़ा मज़ा आता है - हवा में उड़ते से है वहाँ - उछल उछल कर चलते है वहां ! बेटी पूछती - अम्मा कैसे चल पाती होगी - अब तो कितनी बूढी हो गई होगी !!
और भी कितनी वैज्ञानिक बाते बताई थी मैंने - वहां इंसान खुले में साँस भी नहीं ले सकते , कुछ अलग किस्म के कपडे पहनने होते है !
बेटी कहती - मम्मा ये अम्मा तो सदियों से वहाँ है - साड़ी पहना करती थी बूढ़ी अम्मा तो , तो वो साँस कैसे लेती है ?
पूछती कि अगर वहाँ राते बड़ी ठंडी और दिन बेहद गरम होते है तो अम्मा के पास तो न शाल , न स्वेटर , न पंखा, जाने कैसे रहती रही है वो तब से अब तक ???
बेटी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था मेरे पास जब वो कहती अब इतने लोग जो चाँद पर गए थे क्यूँ न वापस ले आये वो उस बूढ़ी अम्मा को वहाँ से ?
मैं कह देती - कौन जाने उन्होंने खोजने की कोशिश की भी या नहीं ???
कितनी अजीब बात है - एक और दंतकथाए तो दूसरी और विज्ञान। अब उस छोटी नादान समझ को क्या पता विज्ञान और दंतकथा का फ़र्क़ ! मैं भी तो उसे कहानी और सच का फ़र्क़ नही समझा पाई - सोचा कुछ जवाब वक़्त ही देता है - इंतज़ार करना मुनासिब होगा
अब तो बेटी बड़ी हो गई है - सब समझने लगी है ! मेरे याद दिलाने पर हँस पड़ती है अब - क्या आप भी, मम्मा !!
खैर, जो भी हो, चंदा तो सबका दुलारा है , सबका मामा है - और मामा के घर जाना तो सबको बेहद पसंद है, है न ?
इसीलिए तो वो मेरे घर से थोड़ी सी दूर छोटे से घर में रहता है न जो छोटा सा चार साल का रघु - किल्लतों से परेशां रघु , ख्वाहिश कैसी ?? ज़रूरतों का मारा, रघु !!
वही रघु, जब से उसकी माँ ने कहा है - चाँद तो मामा है तब वो अपनी माँ से कह रहा है - अम्मा, हम चाँद पर जायेंगे !
आप भी सुनेंगे न रघु क्या कहता है अपनी माँ से ,

अम्माँ !
मैने, चंदा पे झाड़ू फेर दी।
जित्ती मिट्टी थी गेर दी।
चंदा के दिन और रातो को
एक छोटी सी दोपहर दी।
लंबी राते और एक भोर दी।

अम्माँ !
मैंने, चंदा पे एक घर बनाया है।
मुन्नी, बाबा और तेरे वास्ते।
अम्मा !वहां टेढ़े मेढ़े है रास्ते
हम जायेंगे बादल के रास्ते

अम्माँ !
वहां ठंडी राते होती है।
परियों की बाते होती है।
रहती है कोई दादी वहां
जो न जगती है न सोती है।

अम्माँ !
कह दो न अब बाबा से,
अब दूर यहाँ से जायेंगे।
तारों के बीच उस चंदा पर,
अपना घर हम, बसाएंगे

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