नींद की आँखे
बड़ी ही कमज़ोर हो गई है।
सपनो के धागो से
सीना चाहती है ,
फटी हुई ख्वाहिशोंयों को ,
सोचती हूँ पैबंद लगा दू
यादो के।
मुई यादें भी ऐसी
की बस ज़रा सा ज़ोर पर पड़ा
और चरर्र से फट जाती है
और बस झाँकते हे
फटी हुई रिश्तो की किताबे
रिसते हुए कलम
की सियहि से
बदनुमा मैला कुचला सा
साँझ का आँचल
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