बरसो पहले .............बस अनायास ही !
कितने बरसो पुरानी वो बात है - शायद बीस साल या और भी पुरानी ... पता नहीं ???
किसी का भी साथ .... अब अच्छा नहीं लगता।
बस मन करता है कि .....कोई नहीं हो ......
सिर्फ .... हवा पानी पेड़ पौधे --- और कोई नहीं ..... - कोई भी नही !!!
ये चुपचाप सुनते है ...... मेरी बाते! …… खुश होते है - जब मैं खुश होती हूँ,और कभी कभी उदास भी हो जाते है - मेरे साथ।
और हां - ये जो हवा है न !!!
बड़ी पक्की सहेली है मेरी ..... जब भी कभी रोती हूँ न मैं - मेर आंसू पोंछ देती है..... रोने ही नहीं देती। पगली!! … कभी बालो को छेड़ेगी। । कभी दुपट्टा उड़ा देगी ..... दूर तक..... फिर मुझे दूर तक दौड़ा देती है ....पगली कहीं की !!
और हाँ ये बारिश भी कुछ ऐसी ही है। कहती है रो ले जी भर के! मैं तब तक नहीं रुकूँगी, जब तक तेरा जी हल्का नहीं हो जाता ! कितनी अच्छी है न… कितना प्यार करती है मुझ से। ।
और ये सर्दियों की ठण्ड तो कमाल की है। … जब देखो जब परेशान करेगी मुझे
पर हाँ ! जब मैं रजाइयों में सिमट जाती हूँ न तो लगता है जैसे माँ की गोद में सिमट गयी हूँ। बस मिनिटो में मुझे नींदों की बाँहों में सुला देती है.
कितने अपने है न ये सब। सिर्फ मेरे !!
मगर, सुनो, मैं मिलना चाहती हूँ ! खुद से ! सोचती हूँ - कब मिलना होगा ? मिल भी पाऊँगी इस जनम में या बस यूँ ही । ख़त्म हो जायेगा सब कुछ ??
अक्सर किवाड़ भिड़ाकर कमरे में बैठी बैठी सोचती रहती हूँ। या फिर बेसबब निकल पड़ती हूँ लम्बे रास्तो पर - अकेले -
सुनो तुमने कभी कहीं देखा है क्या ?? नहीं ये मैं नहीं हूँ!!
वो मैं - जो कब से गुम है!
कभी कहीं मिले हो तो कहना .. मैं याद करती हूँ अक्सर .. खुद ही को ..तलाश कर रही हूँ ... घर लौट आए .. मेरे पास ...
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