10 September 2015

तेरा गाँव छोड़ आई हूँ




ख़्वाबों  का तेरा वो मकां 
तेरा गाँव छोड़ आई हूँ। 
सूनी   राहें है मेरी 
राहों की छाँव  छोड़ आई हूँ। . 

लगाया था खुशियों पे कभी 
वो दाँव  छोड़ आई हूँ। 
रिसते हैं आज भी 
हरे वो घाव छोड़ आई हूँ। 

वो ख़ुलूस वो सुकूं 
दबे पाँव छोड़ आई हूँ। 
अब के डूबे या रहे 
दरिया में नाँव  छोड़ आई हूँ। 


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