9 September 2015

Best of Ahmed Faraz

डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा

जब तिरी याद के जुगनू चमके देर तक आँख में आँसू चमके

दिल को तेरी चाहत पर भरोसा भी बहुत है // और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता ।।

सिलवटें हैं मेरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है ज़िंदगी ने मुझे कुछ तुम से ज़ियादा पहना

वो चला गया जहाँ छोड़ के मैं वहाँ से फिर न पलट सका// वो सँभल गया था 'फ़राज़' मगर मैं बिखर के न सिमट सका

अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है उमर गुजरी है उसकी याद का नशा किये हुए..!


दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला

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छाओं में बैठने वाले ही तो सबसे पहले, पेड़ गिरता है तो आ जाते हैं आरे लेकर
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मैं रात टूट के रोया तो चैन से सोया कि दिल का ज़हर मिरी चश्म-ए-तर से निकला था...

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दिल से तो हर मुआमला करके चले थे साफ हम/ कहने मे उनके सामने बात बदल बदल गई
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रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
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ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती .. ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों मे मिलें
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ...
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कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते

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