हाथों से मेरे, उँगली तेरी छूट गयी .......
क्यों जाने हुआ ये,
आज फिर से
मैं, अपने ही भीतर से
एक टुकड़ा और
गिरकर टूट गयी।
एक हँसी
जो गूंजी थी मुझमें,
आज न जाने
किस बात पे मुझसे
रूठ गयी।
हाँ, ख्वाब ही था वो ,
नींद खुली और
हाथों से मेरे,
उँगली तेरी
छूट गयी।
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