7 August 2015

जाने ऐसा लगे- तूने कुछ है कहा !!


जब बहती ही जाए,  ये  पागल हवा !
जाने  ऐसा लगे-  तूने कुछ है कहा !!

मेरे  साए ही जाने क्यों मुझको सताए,
रात को फिर से, सुबह हो जाए,
खोलू जो आँखे  और देखु जहाँ,
तू मुस्कुराए  बस वहाँ ही  वहाँ .......... 

रेत की गीली चादर क्यों लहरें बिछाए ?
ये समुंदर मुझको क्यों जाने,  बुलाए?
रेत पे चल पडूँ , मैं भी  जहाँ , 
देखती हूँ बस   तेरे, कदमो के निशाँ। …… 

सात जन्मों  से क्यों तू,  मुझको  पुकारे ?
ले आ गई मैं तेरी  -सांझ सावारे!
चाहे  हो ये फलक , या हो  कोई जहाँ, 
 आऊँगी मैं वहाँ,  तू कह दे जहाँ   .......... 

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