14 August 2015

बरसो सी एक तलाश थी


बरसो की एक तलाश थी , 
 जो आ  कर तुझपे, थम गई।  
उदास इन ख्यालो  में , 
तेरी   सुगबुगाहट  बढ़  गई ।  

 तू मिला जैसे मुझे 
सारी खुदाई मिल गई !
क्या ज़मीं, क्या आसमाँ, 
मेरी दुनिया ही  बदल गई !!

वो धोख़ा  था, फरेब था !
जब जाना तो नब्ज़ थम गई !!!
सौदे  के  इस बाजार में ,
 उसूलों की, दिल से  ठन गई .......  


एक कोशिश और,
ख़ून से, कलाई मेरी रंग गई !
ज़िन्दगी और मौत की ,
एक बार फिर जंग छिड़ गयी  . 

सुर्खियाँ  अख़बार की , 
उस  रोज़ जब मैं बन गई ! 
शर्मसार थी मैं यूँ भी ,   
एक बार फिर शर्म से मर गई  !!!!

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