बरसो की एक तलाश थी ,
जो आ कर तुझपे, थम गई।
उदास इन ख्यालो में ,
तेरी सुगबुगाहट बढ़ गई ।
तू मिला जैसे मुझे
सारी खुदाई मिल गई !
क्या ज़मीं, क्या आसमाँ,
मेरी दुनिया ही बदल गई !!
वो धोख़ा था, फरेब था !
जब जाना तो नब्ज़ थम गई !!!
सौदे के इस बाजार में ,
उसूलों की, दिल से ठन गई .......
एक कोशिश और,
ख़ून से, कलाई मेरी रंग गई !
ज़िन्दगी और मौत की ,
एक बार फिर जंग छिड़ गयी .
सुर्खियाँ अख़बार की ,
उस रोज़ जब मैं बन गई !
शर्मसार थी मैं यूँ भी ,
एक बार फिर शर्म से मर गई !!!!
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