11 August 2015

मेरे हाथो की लकीरों से , एक लकीर जाने कहाँ ग़ुम हुई ……


किसी की वो निगाह थी  … 
किसी की मुझे चाह थी  .... 
किसी की  उस तलाश में  .... 
 मैं जाने कहाँ  ग़ुम  हुई  …… 


चले थे ये जो रास्ते …… 
जो बने थे मेरे वास्ते  ……
क्या जाने  किसी मोड़ पे  ……
वो राहें  कहाँ ग़ुम  हुई  ……

बरसती वो बूँदे थी  ……
तरसती वो बूँदे  थी  ……
सूनी सूनी आँखों से  ……
बरस के कहाँ ग़ुम  हुई  ……


किसी से  कुछ ग़िला नहीं ……
कोई भी  शिक़वा  नहीं ……
मेरे  हाथो की लकीरों  से ……
एक लकीर जाने कहाँ ग़ुम  हुई ……















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