शाम आई दबे पाँव जब तो
खुश हो गया वो चाँद
आसमां के माथे पे बिंदी सा
सज गया वो चाँद।
काली रातों की सियाही में
कहीं खोने लगा वो चाँद,
होने को आई जब सहर तो,
बेज़ार, रोने लगा वो चाँद
अपने अश्क़ो से ज़मी को
भिगोने लगा वो चाँद।
दिन ने दिनभर उसको मनाया,
तो दिन में फिर सो गया वो चाँद।
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