23 July 2015

वो चाँद



शाम आई दबे पाँव जब तो 
खुश हो गया वो चाँद 
आसमां  के माथे पे बिंदी सा 
सज गया वो चाँद। 

काली रातों  की  सियाही में 
कहीं  खोने  लगा वो चाँद,
होने को आई जब  सहर तो, 
 बेज़ार, रोने लगा वो चाँद

अपने अश्क़ो  से ज़मी को
भिगोने लगा वो चाँद। 
दिन ने दिनभर उसको मनाया, 
तो दिन में  फिर सो गया वो चाँद। 

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