22 July 2015

चाँद की रौशनी ने जला दी आँखे मेरी



चाँद की रौशनी ने जला दी आँखे मेरी
मेरी रातो की फिर कभी कोई सुबह न हुई.

मुझसे नाराज़ हमेशा से है  ख़ुशी
इस बेरुखी की क्या कोई वजह न हुई

इस कदर मुझसे वो ख़फ़ा हुए क्यों जाने 
उम्र गुज़री मगर कोई सुलह न हुई 

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