22 July 2015

ख्वाब



मेरे ख्वाबो के दरीचों से कुछ.
ख्वाब तुम भी चुन लो ना !
बेरंग से,  हुए कुछ ख्वाब ,
इनमे , रंग तुम भी भर दो ना।


बेघर है, आवारा है,  
कुछ ख्वाब मेरी रातो के।
मेरे ख्वाबो को एक बार
फिर जीने की वजह दो ना

टूटी हुए काँचो से ये
पलकों में चुभते है।
रिसते हुए इन ख्वाबो पे
मरहम तो लगा दो ना।


बारिश की बूंदो से 
साहिलों की रेतो से 
आओ अपने हाथो में तुम 
ख्वाब ये सजा लो न  








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