हम है,
पत्थर के सनम !
कुछ न कहते है,
कुछ न सुनते है,
इस पत्थर की
दुनिया में हम भी रहते है !
सुनो,
न उम्मीद लगाना
हमसे कोई !
न सजाना हमसे
सपना कोई !
इस जहाँ में
न खुशियाँ है न ग़म !
हमसे मिलकर
हो जाओगे तुम भी
पत्थर के सनम !
हमने कहा -सुनो ,
वो जो पत्थर है,
उन्हें पिघलते
देखा है हमने !
कितने अंधियारे हो,
दियो को जलते
देखा है हमने !
तो क्या,
जो तुम पत्थर के हुए?
यूँ भी हर मंदिर में ,
पत्थर के खुदा
रहते है
सुनो अब तूम
मेरे मन मंदिर के
मेरे मन मंदिर के
अब से
तुम ख़ुदाया हुए।
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