वक़्त लगता नहीं करीब आने में
सदियाँ लगती है फ़िर, भूलाने में।
दर्द किश्तों में मिला है मुझको
बेपनाह यूँही तुझको चाहने में।
तुझसे पूछे बिना चाहा तुझको
बस इतनी सी है खता मेरे फ़साने में।
छोड़ आई किसी मोड़ पे, खुद को
जाने क्यों ढूंढती हूँ तुझे ज़माने में।
'साँझ' चाहे तुझे, कोई और मुझे,
ये सज़ा मिले न किसी को ज़माने में
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