4 July 2015

ऐ ज़िंदगी !



यूँ चंद ख्वाहिश,
मुट्ठी में लेकर,
चल दिए कहीं  पे हम,
सुन !  ऐ  हसीँ  ज़िन्दगी!

किसी  ख़ुदा को
हमने न माना,
बस बेखुदी की,
करने लगे  हम बन्दगी !

तुझको चाहा
खुद से ज़्यादा
सुन ले !
ऐ दिल की  लगी  !


मिला न मुझको,
हमसफ़र वो
क्या जाने क्यूँ
ऐ  ज़िन्दगी !


तन्हा सफर में,
खुद से ही जाने,
अजनबी सी हो गई
है ये   ज़िन्दगी !

ये क्या हुआ ?
ये क्यों हुआ ?
जाने कहाँ कैसे हुआ
 तुझको पता है क्या ज़िन्दगी ?

क्यों गुमशुदा है
 तू ज़िन्दगी !!
 तू ही बता
ऐ  ज़िन्दगी !

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