यूँ चंद ख्वाहिश,
मुट्ठी में लेकर,
चल दिए कहीं पे हम,
सुन ! ऐ हसीँ ज़िन्दगी!
किसी ख़ुदा को
हमने न माना,
बस बेखुदी की,
करने लगे हम बन्दगी !
तुझको चाहा
खुद से ज़्यादा
सुन ले !
ऐ दिल की लगी !
मिला न मुझको,
हमसफ़र वो
क्या जाने क्यूँ
ऐ ज़िन्दगी !
तन्हा सफर में,
खुद से ही जाने,
अजनबी सी हो गई
है ये ज़िन्दगी !
ये क्या हुआ ?
ये क्यों हुआ ?
जाने कहाँ कैसे हुआ
तुझको पता है क्या ज़िन्दगी ?
क्यों गुमशुदा है
तू ज़िन्दगी !!
तू ही बता
ऐ ज़िन्दगी !
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