22 July 2015

तू मुझी में रह गया



सोचती  हूँ 
अक्सर जब भी 
समुन्दर के किनारे 
भीगती हूँ कहीं -

ये   वक़्त  हुआ कुछ लहरों सा
जाने कहाँ,  कितना  बह गया !!
किसी कारवां साथ  मेरा छोड़, कहीं दूर,
बहुत दूर  चल दिया 


न जाने क्यों , 
तू  जो ज़रा सा,
मुझमे   कहीं  था
शायद तू 
मुझी में   वहीँ  पर रह गया     !  !

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