मेरे कान्हा !
मेरे श्याम !
हुए कहाँ तुम
अंतर्ध्यान।
यमुना तट पर
गइया चराते,
मधुर चैन की
बंसी बजाते।
घर आ गए
तेरे साथी तमाम
तू भी आजा
मेरे लल्ला, मेरे प्राण।
माँ व्याकुल हो
तुझे पुकारे
गोप गोपिया
राह निहारे।
दिन ढला
अब हो गई शाम !
घर आ जा
मेरे घनश्याम।
तेरी बाट निहारे
गोकुलधाम।
मेरे श्याम !
हुए कहाँ तुम
अंतर्ध्यान।
यमुना तट पर
गइया चराते,
मधुर चैन की
बंसी बजाते।
घर आ गए
तेरे साथी तमाम
तू भी आजा
मेरे लल्ला, मेरे प्राण।
माँ व्याकुल हो
तुझे पुकारे
गोप गोपिया
राह निहारे।
दिन ढला
अब हो गई शाम !
घर आ जा
मेरे घनश्याम।
तेरी बाट निहारे
गोकुलधाम।
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