12 May 2015

डर लगने लगा है


मेरी सहर तू, मेरी साँझ तू
लिख दे हर एक शाम मेरे नाम  तू 
शामो की रंगत घुलने लगी ..... परछाई में 
अब परछाईयों से ........ डर लगने लगा है

तू खो न जाना ए मेरे खुदा!
इबादत करू मैं तेरी सदा ! 
यूँ मोड़ पर तू मुझे छोड़ न ...... तन्हाई में 
अब तन्हाईयों  से ........डर लगने लगा है .


तेरी ही खातिर मैं जीने लगी!
तुझी पर अब मैं यूँ .. मरने लगी
ये ज़िन्दगी यूँ गुज़र जाए न ........रुसवाई में 
अब रुसवाइयों से .......... डर लगने लगा है .

फलक से भी ऊँचा तेरा प्यार है!
समुन्दर से गहरा तेरा प्यार है!
 बहने लगे है इस प्यार की ...... गहराई में
अब गहराईयों से ......... डर लगने लगा है

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