बैठी हूँ मैं सदियों से, मेरी राहों को रहगुज़ार दीजिए
बडी उलझी है लटे मेरी, उँगलियो से सँवार दीजिए
माना नही हूँ किसी मशहूर शायर की ग़ज़ल मैं,
मुझे अपने किसी एक शेर मे शुमार कीजिए
नही माँगा मैने, ए खुदा! अपनी किस्मत से ज़्यादा
बस इक निगाह रहम की मुझपर, परवर दीगार कीजिए
ना जाने कब कैसे तुमसे प्यार कर बैठी
ए हमदम मेरे! हमसे आँखें तो दो चार कीजिए
कब तक बहलाती रहूंगी खुद को तस्वीरो से तेरी
कि अब तो, ए हमदम! मुझे अपना दीदार दीजिए
नही जी पाउंगी मैं अब और तेरे बिना
किश्तो मे सही, चन्द साँसे मुझे भी उधार दीजिए
बडी उलझी है लटे मेरी, उँगलियो से सँवार दीजिए
माना नही हूँ किसी मशहूर शायर की ग़ज़ल मैं,
मुझे अपने किसी एक शेर मे शुमार कीजिए
नही माँगा मैने, ए खुदा! अपनी किस्मत से ज़्यादा
बस इक निगाह रहम की मुझपर, परवर दीगार कीजिए
ना जाने कब कैसे तुमसे प्यार कर बैठी
ए हमदम मेरे! हमसे आँखें तो दो चार कीजिए
कब तक बहलाती रहूंगी खुद को तस्वीरो से तेरी
कि अब तो, ए हमदम! मुझे अपना दीदार दीजिए
नही जी पाउंगी मैं अब और तेरे बिना
किश्तो मे सही, चन्द साँसे मुझे भी उधार दीजिए
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