9 January 2015

हमने खुद को मरते देखा

हर ख्वाहिश को  घुट घुट कर मरते देखा
बुलुंद आसमानो को ज़मीन पर गिरते देखा

ज़िंदगी मे कहाँ नसीब थी खुशियाँ
बस अपनी  उम्र मे सालो को जुड़ते देखा

इन आँखों मे कहाँ सपनो की गुंजाइश थी
बस इनसे हमने  आंसूओ को बहते देखा

हर शख्स यहाँ खरीदार हुआ
हर मोड़ पे  हमने खुद को बिकते देखा

हर वक़्त हरा कोई जख्म हुआ
हमने अपनो  को जले पर नमक छिड़कते देखा

कतरा कतरा लम्हा लम्हा
ज़र्रा ज़र्रा   हमने खुद को मिटते देखा

ए वक़्त! ले आज़मा ले मुझको फिर से
हर बार हमने गिरकर खुद को संभलते देखा

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