कुफ्र तेरा अब और नही सहा जाता मुझसे
अपनी बेरुख़्री की मुझको, कोई वजह तो दे.
हवाए मेरी मर्ज़ी से कब रुख़ अपना बदलती है
उजड़ा क्यूँ आशिया मेरा, मुझे कोई बता तो दे.
गिराना था अगर मुझको, शहर की हर ऩज़र मे यूँ
पलको पर बिठाया क्यूँ,मेरे हमदम मुझे बता तो दे
थक गई हूँ मैं, हर रोज़ थोड़ा थोड़ा मर मर के
बस एक रोज़ जीने का, मेरे मालिक! मुझे कोई सबब तो दे.
माना किए बहुत मैने, गुनाह तेरी दुनिया मे
सब गुनाहो की खुदा! मुझको, एक साथ सज़ा मत दे
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