8 January 2015

शिकायत

रात चाँद ने कोई  तो शरारत की है
इसलिए दिन मे आज एक हरारत सी है

 तो क्या जो माथा नही टेका तेरे दर पे
मैने तेरी ए खुदा ! दिल से इबादत की है

रात और दिन किसी छोर पे तो मिल जाए
किसी एक शाम ने ये चाहत की है

आज खाली पड़ा है ये मका मेरा
एक बाशिंदे ने फिर से बग़ावत की है

वक़्त कभी किसी का ना होगा, ना  हुआ
आज फिर वक़्त ने मुझसे अदावत की है

क्या करू बाज़ नही आता है दिल मेरा
आज फिर इसने  तेरी एक शिकायत की है

तू मिले या ना मिले, परवाह नही
तेरे सजदे मे  मैंने , जाने कितनी रवायत की है

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