रात चाँद ने कोई तो शरारत की है
इसलिए दिन मे आज एक हरारत सी है
तो क्या जो माथा नही टेका तेरे दर पे
मैने तेरी ए खुदा ! दिल से इबादत की है
रात और दिन किसी छोर पे तो मिल जाए
किसी एक शाम ने ये चाहत की है
आज खाली पड़ा है ये मका मेरा
एक बाशिंदे ने फिर से बग़ावत की है
वक़्त कभी किसी का ना होगा, ना हुआ
आज फिर वक़्त ने मुझसे अदावत की है
क्या करू बाज़ नही आता है दिल मेरा
आज फिर इसने तेरी एक शिकायत की है
तू मिले या ना मिले, परवाह नही
तेरे सजदे मे मैंने , जाने कितनी रवायत की है
No comments:
Post a Comment