इतने मसरूफ़ रहते है वो, कि उन्हे फ़ुर्सत ही नहीं
मैं रहू या ना रहू, उन्हे मेरी ज़रूरत ही नहीं
कातिल है वो! कत्ल करते है निगाहों से!
कत्ल करने के लिए उन्हे खंजर की ज़रूरत ही नही
इंतेज़ार तो बस जैसे मेरे नसीब मे लिखा है
मेरे मालिक! मुझ पे मेहेरबान होने की उन्हे ज़रूरत ही नही
साँसे मेरी अब तो चल रही है थम थम
मेरे जाने पे, रोने की, उन्हे ज़रूरत ही नही
मेरी आवारगी के क़िस्से तो चर्चा ए आम हुए
साथ मेरे बदनाम होने की उन्हे ज़रूरत ही नहीं
मैं रहू या ना रहू, उन्हे मेरी ज़रूरत ही नहीं
कातिल है वो! कत्ल करते है निगाहों से!
कत्ल करने के लिए उन्हे खंजर की ज़रूरत ही नही
इंतेज़ार तो बस जैसे मेरे नसीब मे लिखा है
मेरे मालिक! मुझ पे मेहेरबान होने की उन्हे ज़रूरत ही नही
साँसे मेरी अब तो चल रही है थम थम
मेरे जाने पे, रोने की, उन्हे ज़रूरत ही नही
मेरी आवारगी के क़िस्से तो चर्चा ए आम हुए
साथ मेरे बदनाम होने की उन्हे ज़रूरत ही नहीं
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