25 November 2014

क्या कुछ याद है तुम्हे

खूबसूरत से फूलो की महेक छू गई थी, 
उठाकर तुम्हे शायद कुछ कह रही थी,
हसीं आ गयी थी तुम्हें,
क्या कुछ याद है तुम्हें?


जब  पत्तियो से छंनकर सुनहरी धूप आ रही थी, 
दरखतों के नीचे तुम्हें नींद सी आ गई थी,
ख्वाबों ने कानो मे कुछ  कहा बुदबुदाकर,
क्या कुछ याद है तुम्हें?


बीते सालो की तस्वीर मेज़ पर रखी है
हर   चेहरे पे कोई कहानी लिखी है,
याद कर आँखे भी भीनी से हो गई है ,
क्या कुछ याद है तुम्हें?


बंद होठों से कितनी  आवाज़ें दी थी ,
कहाँ से न जाने, कहाँ को चली थी,
कहीं खो गई मैं, कहाँ खो गई मैं
क्या कुछ याद है तुम्हें?

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