आसमान से टूटा तारा
मैने देख , उसे पुकारा.
मैने देख , उसे पुकारा.
सुनो , रूको, और बात करो,
कुछ दूर मेरे संग साथ चलो.
कुछ दूर मेरे संग साथ चलो.
इस तरह तुम क्योकार टूटे ?
क्या किसी अपने से रूठे?
कैसे जल गई तुम्हारी काया?
ऐसे जल कर तुमने क्या पाया?
तुम कितने ही सुंदर थे!
क्या भीतर क्या अंदर से!
अपनी हस्ती को यूँ मिटाकर ,
यूँ अपने ही प्राण गवाँकर,
कहो मुझे तुम ? तुमने क्या पाया?
क्या जीवन, तुम्हे रास ना आया?
तारे ने कही कुछ बात मुझे यूँ,
मन को छू गई, अनायास मुझे यूँ,
मेरी नियती में जलना है,
अपने गम में यूँ पिघलना है.
में जलता हूँ तो जीवन है,
धरा के हृदय में स्पंदन है.
हरी भरी है जो ज़मीं तुम्हारी,
वो मैने ही तुम पर वारी.
मैं सूरज हूँ किसी धरा का,
ब्रम्हांड मैं कितने सूरज, मैं अदना सा.
मुझसे पानी , मुझसे वर्षा,
मैं नही तो जीवन तरसा.
मैं नही तो जीवन तरसा.
कहते है कोई भला मानस जब मार जाए ,
तारा बन आसमान मैं वो टिमटिमाए.
टूटे जब मुझसा तारा कोई,
समझना किसी की आँख है रोई
ख्वाहिशे जब भी माँगे आसमानो से दुआ,
मुझसा एक तारा उसे पूरी करने, टूट यूँ चला.
मैने अपने जीवन को भरपूर जिया,
खुश हूँ, मेरी मौत ने किसी चाह का दामन सिया.
चलता हूँ, की अब ना फिर मुलाकात होगी,
जब ख्वाहिशे है, तो फिर और टूटे हुए तारो से तुम्हारी बात होगी
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