कही दुबकी पड़ी छोटी सी ख्वाहिश ने अंगड़ाई क्या ली
और देखते ही देखते बस पूरी भी हो गई
फिर आया एक सैलाब सा और मैं तो बह गई
और पल मे ये खुशनुमा ज़िंदगी वीरान हो गई
मैं कहाँ हूँ और यहाँ मैं क्यूंकर आ गई
वक़्त हँसा
तू जन्नत मे थी अब जहन्नुम मे आ गई
मर मर के जीने की तेरी ये अदा मुझे तो भा गई
कि ज़िंदा है तू पर तेरी हर एक साँस मर गई
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