ये पाँव मेरे ज़मीं पर तो पड़ते नही थे
ज़िंदगी को तो जैसे पर लग गये थे
उड़ने लगी मैं खुले आसमा में
सपनो को जैसे नई ज़िंदगी मिल गयी थी
ये दरख़्त कैसे कैसे सरसारते हुए से
हवा से बड़ी शिद्दत से गले मिल रहे थे
सूरज की दह्कति किरण को छुकर
फुलो के बदन भी दहकने लगे थे
हर तरफ जैसे संगीत बजने लगा था
साँसे मेरी भी बहकने सी लगी थी
अचानक वक़्त ने मुझे आकर जगाया
देखा तो …..
उम्र बेतहाशा बड़ी हो चुकी थी,
सफेदी ने बालो मे जगह घेर ली थी,
झुरिया चेहरे से झाकने भी लगी थी.
समय ने कहा मुझसे - उठो तुम और जाओ!
ये सपने अब किसी और आँख के है,
तुम्हारा वक़्त तो गुज़र भी गया है!
नही शोभते तुम्हारी आँखों मे ये सपने,
हर एक चीज़ की उम्र तय हो चुकी है.
वो सपने जिन्होने तुमको आवाज़ दी है
वो तुम्हारे नही किसी और के है.
अब जाओ, ना आना इस देस लाडो
तुम्हारी ये दुनिया कभी भी नही थी
ना कल थी, ना है आज और कल भी ना होगी
कभी भी हुई ना और कभी भी ना होगी
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