आंखें जादू, हुस्न का तड़का
दिल में इश्क का शोला भड़का
सुनहरी सुबह की रंगत देख के
चांद रात का दिल यूं धड़का
बातों वादों का वो धनी था
जेब से लेकिन था वो कड़का
दिल में वो दबे पांवों आया
न खिड़की न दरवाज़ा खड़का
ग़ज़ल गांव के बाशिंदे दोनो
धूप सी लड़की चांद सा लड़का
5 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 09 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
प्रेमी-युगल पर बहुत ही उच्च स्तरीय भावपूर्ण रचना !
भड़का', 'तड़का', 'लड़का' से मिलता-जुलता - 'हड़का' शब्द भी इस कविता में यदि आ जाता तो इसे किसी फ़िल्म का हिट का गाना बनाया जा सकता था.
वाह
सुन्दर...
सुन्दर रचना
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