आधी नज़्म का पूरा टुकड़ा
किसे सुनाएं अपना दुखड़ा
नई नई दौलत थी उसकी
चलता था वो अकड़ा अकड़ा
नए शहर का काज़ी था वो
नया चोर था उसने पकड़ा
कितने थे वो दर्द छुपाए
हंसती आंखे सुंदर मुखड़ा
गली के रस्ते चौड़े थे सब
दिल का रस्ता सकड़ा सकड़ा
पहन के इक तितली का मुखौटा
जाल बुने वो काला मकड़ा
रियल कौन था ,कौन वर्चुअल
कोई न जाने क्या है लफ़ड़ा
कहे सांझ जीवन में हर कोई
सुख दुख के बंधन में जकड़ा
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