17 March 2024

सुनो न ज़िंदगी घर को चलते है

 सुनो न ज़िंदगी..

चलो  न, अपने  घर को  चलते है ..

ज़ख्म खाई रातों के घावों पे

सुबह का मलहम  सा रखते है !


तीखी धूप सी 

जो जल उठी हो खुद यूं भीतर से,

आओ न ठंडे सायों को 

तुम्हारा बदन  सा करते है .


कहीं  सीधी नहीं 

बड़ी  ही उल्टी है दुनिया ये 

चलो न पांव को सर 

और 

सर को पांव करते है 

चलो न ज़िंदगी फिर से 

शहरों को गांव करते है 

चलो न ज़िंदगी

आज अपने घर को चलते है 

No comments: