एक धुन सदियों से
गुनगुनाती तुझे
वो है गाती तुझे
सुनाती है तुझे...
एक धुन सदियों से
गुनगुनाती तुझे
वो है गाती तुझे
सुनाती है तुझे...
वो धुन भंवरों ने है चुराई
जाने कैसे
वो धुन यूं बारिशों में खनखनाई
जाने कैसे
इस हवा में सुर छिपे है
बूंदों में स्वर बुने है
बहारें बोलती है
किनारे डोलती है
राज़ दिल में जो छिपे है
आंखों से वो खोलती है
इस देहरी से उस
दहलीज पे बुलाती है तुझे
इश्क ही बस ज़िंदगी है
ये बताती है मुझे
13 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 17 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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आभार यशोदा जी
दिल से
वाह
बेहद मर्म स्पर्शी रचना
सुन्दर
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर
सुंदर रचना
बहुत सुंदर रचना
वाह!बहुत खूब!
सुंदर!
सुंदर!
आप सभी का हृदय पूर्वक आभार
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