मेरा...
तुम्हे देखना हर रोज़
ऑफिस जाते हुए ...
तुम्हारी हर छोटी बात का
रखना खयाल...
फिर मन ही मन तुमसे
मिन्नते करना, मनाया करना ...
और सोचना कि .....
जब तुम आओगे शाम,
तो भर दोगे
डूबते हुए
सूरज की लालिमा
मेरी मांग में..
दूज के चांद की
बिछिया पहना दोगे मुझे ...
शाम का स्याह काजल
लगा दोगे आंखों में..
अधरो पे फूलों का प्रगाढ़
लाल रंग धर दोगे
और
फिर श्वेत शशांक सी
श्वेत साड़ी पे
टांके हुए तारों को
मेरी देह पे लिपटा
दिया करोगे तुम...
मेरे भीगे घने बालों में
फिसलती, लिपटती
इस रात को, रात भर
अपने अधरों से
उंगलियों से खेलने दोगे तुम ...
और फिर हर सुबह..
रातरानी के रतजगों सी
महकती मेरी खुशबू,
मेरे स्पर्श के कुछ कतरे,
तुम्हारी ऑफिस की
यूनिफॉर्म वाली शर्ट पे
देर तक महका करेंगें...
बस यही सब सोच,
मैं हर रोज ..
कुछ खुरचने
अपने इश्क की अपनी चाह की
तुम्हारे टिफिन में
पैक कर दिया करती हूं ...
कि जब जब
इसे खोलोगे तुम...
ये सुनाएंगी तुम्हें
मेरे इंतजार की दास्तां...
कि कैसे
मैं देखा करती हूं,
मैं तुम्हे ऑफिस जाते हुए
और मनाया करती हूं
कि......
3 comments:
उफ्फ उफ्फ उफ्फ.. ग़ज़ब 👌🏻
बहुत अच्छी कविता |बधाई और शुभकामनाएं
अच्छा है
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