ख्वाबों का सिलसिला
जब कभी चल पड़ा
मैं ज़मीन पे चलूं
आसमां में उडूं
उलझनों में ये दिल यूं पड़ा...
ख्वाहिशें थी मुझे तुम
जहां जब मिलो
हाथ थामे मुझे तुम
वहां ले चलो
दिन जहां पर ढले
शब जहां पर जगे
उस क्षितिज पे हो एक घर मेरा ...
ख्वाबों का सिलसिला जब कभी चल पड़ा
कहकशां हूं सितारा तुम
मुझ में पलो
हूं धनक आओ रंगो में
मेरे ढलो
स्याह से रतजगे
आंखों में अब पले
तेरे शानो पे हो सर मेरा ....
उलझनों में ये दिल यूं पड़ा...
ख्वाबों का सिलसिला
जब कभी चल पड़ा
उलझनों में ये दिल यूं पड़ा...
1 comment:
ये भी अजीब कशमकश है ।
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