जानती हूं ....
कुछ खत कभी
पढ़े नहीं जाते ...
कुछ जवाब
कभी दिए नहीं जाते ...
कुछ शब्दों में
लाख कोशिश कर ले
उनसे आवाज़ ही नहीं आती ...
कितनी निगाहें ऐसी
जिनसे जवाब की
तलब कभी भी की
नहीं जाती ...
मैने कुछ ऐसे ही खत
ऐसी कुछ चिट्ठियां
एक डाकखाने में
किसी डाकिए को
दे आई हूं
अब वो फरियादें
मेरी अर्जियां को तुम
सुनो न सुनो
मर्ज़ी तुम्हारी ...
इंतज़ार रहेगा
कि है ये खुदगर्ज़ी हमारी ...
न आओगे तुम
मगर फिर भी
इंतजार तेरा है मुझे
ज़िन्दगी ...
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