15 March 2021

बस खर्च बता तेरी ख्वाहिश का

 


बस खर्च बता तू ख्वाहिश का 

तेरी गुल्लक भी बन जाऊं मैं


सपनों के कारोबारी में 

बस नफ़ा नफा बन जाऊं  मैं 


तेरे सुख दुख के बहीखाते से

हर  दुख को  हरती जाऊं मैं 


खुशियों के सिक्के चंद बनूं

जी  भर भर के लुट जाऊं मैं  


हर हुक्म की बस तामील करूं 

  जादुई जिन्न बन जाऊं मैं 


मैं मोह  और मायाजाल मैं ही

तेरा मोक्ष भी बन जाऊं मैं 


तू खर्च बता तेरी ख्वाहिश का

एटीएम भी बन जाऊं मैं .

5 comments:

दिव्या अग्रवाल said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह , क्या समर्पण है , ख्वाहिशों का खर्चके लिए गुल्लक बन जाना बेहतरीन ख्याल ।

रेणु said...

प्रेम की ताजगी और नव विम्ब विधान से साजी रचना प्रिय संध्या जी | हार्दिक शुभकामनाएं|

रेणु said...

कृपया साजी नहीं सजी पढ़ें |

Anita said...

वाह, प्रेम की नई परिभाषा !