बस खर्च बता तू ख्वाहिश का
तेरी गुल्लक भी बन जाऊं मैं
सपनों के कारोबारी में
बस नफ़ा नफा बन जाऊं मैं
तेरे सुख दुख के बहीखाते से
हर दुख को हरती जाऊं मैं
खुशियों के सिक्के चंद बनूं
जी भर भर के लुट जाऊं मैं
हर हुक्म की बस तामील करूं
जादुई जिन्न बन जाऊं मैं
मैं मोह और मायाजाल मैं ही
तेरा मोक्ष भी बन जाऊं मैं
तू खर्च बता तेरी ख्वाहिश का
एटीएम भी बन जाऊं मैं .
5 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह , क्या समर्पण है , ख्वाहिशों का खर्चके लिए गुल्लक बन जाना बेहतरीन ख्याल ।
प्रेम की ताजगी और नव विम्ब विधान से साजी रचना प्रिय संध्या जी | हार्दिक शुभकामनाएं|
कृपया साजी नहीं सजी पढ़ें |
वाह, प्रेम की नई परिभाषा !
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