मैं कोरोनो
कुछ कहूं...
सुनो ना !!
ठुमक ठुमक
और लचक मटक
मैं आऊं !!
छींक खांस कर
सांस सांस भर
थूक पीक से
इधर उधर
लहराऊं!
दो गज दूरी
अगर रहे न
जो तुम सब में तो ...
तुम्हारी ओर खिंची
चली मैं आऊं !!
तुम सब के
हर अंग अंग में
रोम रोम में
रच बस जाऊं !
तुम बड़े सयाने
पर बात न माने
और फिर
मास्क न पहनो !
हाथ न धोना जानो
सैनिटाइजर को
धता बताओ !!
फिर मैं कहूं - अरे!!
रुको रुको... मैं आऊं !!
और
मैं कोरोनो
एक रोग सलोना
तुम्हारी रग रग में
समाऊं !!
स्वस्थ जीवन से
अस्पताल की राह
की राह तुम्हे मैं
दिखलाऊं ...
सुध बुध सब
जीवन की बिसरे ..
साथी परिजन
सब कौउ छूटे
इस जीवन से
तुम्हरा रिश्ता नाता टूटे ...
न्योता दे दो
कुछ ही दिनों में
परम ब्रह्म से तुम्हे
मैं ही मिलवाऊं ...
इस लोक से
उस लोक की
सैर जल्द करवाऊं ...
सुनो ... रुको ...
खैर जो चाहो
इस जीवन की ...
दो गज दूरी
हमेशा ही बनाओ
और तुम चेहरे पे अपने
सदा मास्क लगाओ
और रहो सदा तुम
स्वस्थ सुखी
ऐसी मैं आस
लगाऊं !!
4 comments:
सुन्दर रचना। कोरोना जैसी घातक संक्रमण के प्रति चेतना जगाती सुन्दर समसामयिक रचना। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ संध्या जी ।।।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
सुन्दर सृजन।
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