बूढ़े पहाड़ अक्सर
जाड़ों में
पीली सुनहरी
धूप सेंकते
सुनाते है
नदियों को
कितनी ही कहानियां
हर नदी
अपने बूढ़े बाबा की
कहानी लिए
सुनाती चलती है
शहर शहर
नगर नगर
वे छोड़ जाती है
कहानी के अवशेष
और
इन्हीं अवशेषों से
उग आती है
सभ्यताएं कई
और
वो बूढ़ा पर्वत
मुस्कुराता है कहीं
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