5 September 2019

अपने घर में


तुमने देखा तो होगा 
मेरा घर 
मैं मेरे घर में 
अपनों के बीच 
अपनेपन से 
रहती हूँ ..


‘मेरे ’  घर में 
तीन बेडरूम एक हॉल 
और किचन के अलावा 
एक स्टोररूम और 
पूजा का एक कोना है ..

और हाँ
अपनी हैसियत के 
हिसाब से 
सजा रखा है 
मैंने  घर अपना ..

हर रोज़ 
बाई आती है
मेरे  घर 
जो झाड़ू पोछा 
कर जाती है ..
और 
जहाँ तहाँ जमी धूल,
और उग आए 
मकड़ी के जालों को 
साफ़ कर जाती है ..

गर कोई 
जानता नहीं है 
तो ये कि मैं ..
ख़ुद अपने ही भीतर 
एक आलीशान से 
कई कमरों वाले 
घर में 
न जाने कितने ‘मैं’ 
के साथ 
रहती हूँ  !!

कौन सी ‘मैं’
और कितनी ‘मैं ‘
किस कमरे में 
रहती है,
ये ख़ुद मैं  भी 
नहीं जानती !!

कितनी ही अलमारियाँ
और कितने ही खाने 
उगा रखे है मैंने 
अपने भीतर  ...
जिनमे कई कई 
‘मैं ’ और मेरी 
अच्छी बुरी यादें ...
बातें दफ़न है !!


मेरे भीतर 
पनपते और फैलते हुए 
इस घर में 
जो जमी हुई 
अहं की  धूल ...
मोह, द्वेष,काम ,
और क्रोध के मकड़जाल है,
उन्हें साफ़ करने के लिए 
कोई कामवाली 
नहीं मिलती मुझे !


कितने ही अंधेरे 
फैले है 
मेरे दिलो दिमाग़ के 
अंधे कुएँ में ...
और 
उम्र के तहखानों में !!
डरती हूँ मैं 
इन डरावने कोनों और 
भयावह कमरों में 
झाँकते हुए !!

हाँ ...
कुछ एक 
सुकून भरे 
एकांत है 
मेरे भीतर ...
जिनमें में 
प्रायः छुप जाती हूँ मैं 
कितनी ही 
अनचाही परिस्थितियों में ...

पिछली दफ़ा 
जब किन्ही 
मुश्किलातों से 
दो चार हुई थी 
तब ..
अपने ही भीतर 
किसी कोने में 
छुप गई थी मैं 
... 
...
...
खो गई  हूँ 
तब से ही
ख़ुद की बनी 
ख़ुद की बुनी 
इस भूलभुलैया में ....

सुनो ..
गर प्रेम में हो मेरे 
तो यक़ीनन 
मुझमे समाहित हो तुम 
गर मुझ में विचरते  हुए 
कदाचित 
कहीं मिल जाऊँ कभी 
बुला लेना 
मिला देना 
मुझे मुझसे 
कि अरसा हुआ है 
मुझे मैं हुए हुए ...

#मैं_ज़िंदगी 

1 comment:

JP Hans said...

अकेलेपन को बयां करती आपकी बहुत अच्छी है। भौतिकतावादी के इस दौर में हम सब इतने तेजी से भाग रहे है कि कोई किसी को खबर लेने की भी सुधि नहीं पड़ी है।