इस समुन्दर सा बदन लिए तुम..
और क़दमों के निशाँ लिए मैं ..
धीरे धीरे
क़दमों से देह तक
देह से रूह तक
तुम में डूबी गई मैं
मगर
हमारी तुम्हारी
बौद्धिक दैहिक
और रूहानी संरचना
अलग थी
अतः घुल न सकी
तुम में
मिल न सकी मैं
और फिर
एक रोज़
तुमने मुझसे
मेरी प्राण छीन
किनारों पे फेंक दिया !
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