20 April 2019

आओ अपनी आँखों से टटोलो मुझे

तुम्हारी आँखे
जानती है
वो सब भावभंगिमाएँ
जिनसे मेरे हृदयमें
 देह में
सैलाब उमड़ आते है !
वे जानती है
किन भावों को
मचलने देना है
किन्हे बंद कर लेना है
पलकों में,
और
होने देना है कुछ
संवादों को
बंद होंठो और
बंद पलकों से ...

तुम्हारी आँखे जानती है
मेरे ज़ेहन की दरारों
में घुस कर
अनायास ही पैठ जाना !

मेरे साफ़ पानी सी
सोच को
एक मुस्कुराहट से
दूधेला कर देती है
तुम्हारी आँखे ...

तुम्हारी आँखे जानती हैं
मुझे सहेजना, बिखेर देना
मेरे अस्तित्व को
बना कर बिगाड़ देना

मेरी अपनी मर्ज़ी से
कहाँ चल पाती है
मेरे मन की कश्ती
तुम्हारी आंखों की लहरे
जिधर ले चलें
चल पड़ती है
सागर सी आंखें तुम्हारी
मुझे डुबाने को तत्पर रहती हैं

सुनो ... मैं आतुर हूँ
प्रतीक्षारत हूँ ...
आओ ...
अपनी आँखों से खेलो मेरे साथ
सताओ मुझे ज़रा
ज़रा सा टटोलो मुझे !!


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