20 April 2019

है चाँद का नशा भी अफ़ीमी


है नशा चाँद का भी..अफ़ीमी...
सुलगती सी रातें  ... अफीमी 
है धुआँ आसमां में  ..अफ़ीमी 

दरख्तों में जब...
शोख चाँद आएगा...
फूल पत्तों में वो फ़िर भटक जाएगा!!
स्याह झीलों में  जब 
पूरा चांद जाएगा 
चाँद पिघलेगा, फिर वो चटख जाएगा...
और हवा  होगी कुछ भीनी भीनी 
और  ये पानी भी होगा....अफ़ीमी!!


बाम पे रात जब
सीला चांद आएगा
चांदनी इस ज़मीं पर वो बिखारयेगा
आंखों में ख़्वाब के
गीला चांद आएगा
ख्वाहिशों को पर वो लगा जायेगा
चाहतों की चदरिया की झीनी झीनी....
इश्क़ की सोहबतें भी अफ़ीमी...


रूह से रूह को
जब वो पास लायेगा
सांस में सांसों ऐसे उलझाएगा 
लम्स जो चांद का 
दिल  को छू जायेगा
जिस्म जल उठेगा और  कसमसा जायेगा  
चैन  छीना और नींदें भी  छीनी 
है नशा प्यार का ये अफीमी 




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