ट्रिन ट्रिन ... फ़ोन घनघनाया
- हेल्लो
- ओ हाय .. आप ?
और हम दोनों में बातें होने लगी ...
और बस इसी तरह हमारी बातों का सिलसिला बढ़ने लगा था
वक़्त गुज़रता रहा अपनी रफ़्तार से और दिन .. हफ्तों में ... और हफ्ते महीनों में बदलने लगे थे !
और हमारी बातें भी और मुलाक़ातें भी .....
फिर एक दिन ...
- hey
- hi
- कब से इन्तजार कर रही थी तुम्हारे फोन का
- hahahaha so you do wait for my phone calls
- कितनी बार बताया तो है .. हां बाबा ...हां.. हां.. हाँ
...और फिर दोनों हंस पड़े थे
और फिर वो कहने लगा
- पता है तुम्हें ? मैं उसे बहुत प्यार करता था मगर हमारे परिवार ने हमारी शादी नहीं होने दी .. वो हमारे रिश्ते में लगती थी न !
-हम्म ....फिर ?
- वो कुछ सालों पहले मिली थी मुझे - वैसी ही - बेहद ख़ूबसूरत - मेरे प्यार सी !
-फिर ?
-हम फिर मिलने लगे ..उसने मुझे बहुत प्यार दिया ....
-ओके ! फिर ??
- वो बहुत अच्छे परिवार से है - रसूख़ वाले परिवार से !!! एक दिन कहा उसने कि अब हमें मिलना बंद करना होगा ...और वो मुझे छोड़कर फिर दूसरी बार चली गई !!
-ओहो ..ये तो बुरा हुआ !
- हां ..मैं.टूट गया हूँ ...मिस करता हूँ ..मगर जानती हो ... तुम उसकी याद दिलाती हो मुझे !
- अच्छा ?? कोई बात नहीं उदास मत हो मैं हूँ न !
और हम दोनों करीब आ गए थे।
और धीरे धीरे ... ये प्रेम का पौधा बरगद का स्वरूप ले चुका था मुझमें ...
मेरी नसों में ... सांसों में आंखो में .. आवाज़ .. कलम .. बस वही था हर तरह ... हर सूं !! ......
....
.......
और एक दिन जैसे मिला था ... वैसे दूर भी चला गया
......
......
......
...दुख... दर्द ...कहा ...सहा ... फिर मौन हो गई ...
....
...
और बरसो बाद...... एक दिन अचानक उसका इंटरव्यू पढ़ा
तो जाना कि उसकी कही हर बात झूठ थी .... सफ़ेद झूठ
....
सदमा लगा था बहुत बड़ा .....
और फिर एक हंसता खिलखिलाता मौन पहन लिया था मैंने
....
....
एक अरसे बाद .... सखी ने पूछा था
काहे इतना हंसती हो ... खूब सज ती हो संवरती हो ...
फिर कहीं दिल लगा बैठी हो क्या ?
सखी : ओहो तो ये इश्क़ के after effects hai !!
कौन... कब ....कहां ....कैसे .... ओहो ...... उससे .??
Omg !! Of all , उससे ??
जानती हूं उसे ! पढ़े है उसके किस्से ... बड़ा मशहूर लेखक है वो !!
तुझे पता है वो एक लेखक है और कहानियाँ तलाश करता है ....
और लिखने से पहले उन्हें जिया करता है !
- तो ?
-तो क्या , तुम उसकी उन उपन्यासों के दो - तीन पन्नो में जगह पा गई !!
-और हां ...तुम फ़ेमस हो गई हो ...तुम्हे तो ख़ुश होना चाहिए !
- नहीं .... मैं किस्सा नहीं हूं ... कहानी नहीं बनने दूंगी खुद को ....किताबों को... उन पन्नों को जला दूँगी मैं !!!
-पन्नो को , किताबों को ही न? ये बताओ स्मृतियों का क्या करोगी ?
लोगों की बातों का क्या करोगी ??
...
-Literature फ़ेस्ट में..... साहित्य गोष्ठियों में चर्चे होंगे - critics पूछेंगे उनसे - इतनी दर्द भरी मन को छू जाने वाली कहानियाँ कैसे लिखी उन्होंने ?
तुम पे लिखे क़िस्सों के कहानियों के चर्चे होंगे ... दिन.... साल... महीने तक ..
-शायद तुम जैसी और कहानियाँ उसे कोई साहित्य पुरस्कार भी दिला दे !!!
- क्यों री ..... खुद को सखी बताती है मेरी
सहेली है न तू ..रो रही हूँ मैं उसके लिए .. मरने की कोशिश कर चुकी हूं .. तुझे रहम नहीं आता मुझ पे??
....
हाहाहाहाहा....बेवकूफ है तू ... तुझ जैसे लोग ही इन famous साहित्यकारों की शक्ति हो ...तुम्हरा प्रेम उनकी शक्ति है ...आज वे जहां आसीन है ... वो तुझ जैसी सैकड़ों लड़कियों की बदौलत है !
- अब सुन ! स्वर्णिम तो नहीं, काले अक्षर में तो लिखा गया तेरा तथाकथित प्रेम! तो यही सही!
अब यही प्रायश्चित है तेरा, अपनी ग़लतियों का ख़ामियाज़ा तो भुगतना होगा तुझे !!
मर्यादा भी तो तूने ही तोड़ी थी न !!
हाहाहाहाहा .....
सुबक ... सुबक ... सुबक ... सुबक !!
x
- हेल्लो
- ओ हाय .. आप ?
और हम दोनों में बातें होने लगी ...
और बस इसी तरह हमारी बातों का सिलसिला बढ़ने लगा था
वक़्त गुज़रता रहा अपनी रफ़्तार से और दिन .. हफ्तों में ... और हफ्ते महीनों में बदलने लगे थे !
और हमारी बातें भी और मुलाक़ातें भी .....
फिर एक दिन ...
- hey
- hi
- कब से इन्तजार कर रही थी तुम्हारे फोन का
- hahahaha so you do wait for my phone calls
- कितनी बार बताया तो है .. हां बाबा ...हां.. हां.. हाँ
...और फिर दोनों हंस पड़े थे
और फिर वो कहने लगा
- पता है तुम्हें ? मैं उसे बहुत प्यार करता था मगर हमारे परिवार ने हमारी शादी नहीं होने दी .. वो हमारे रिश्ते में लगती थी न !
-हम्म ....फिर ?
- वो कुछ सालों पहले मिली थी मुझे - वैसी ही - बेहद ख़ूबसूरत - मेरे प्यार सी !
-फिर ?
-हम फिर मिलने लगे ..उसने मुझे बहुत प्यार दिया ....
-ओके ! फिर ??
- वो बहुत अच्छे परिवार से है - रसूख़ वाले परिवार से !!! एक दिन कहा उसने कि अब हमें मिलना बंद करना होगा ...और वो मुझे छोड़कर फिर दूसरी बार चली गई !!
-ओहो ..ये तो बुरा हुआ !
- हां ..मैं.टूट गया हूँ ...मिस करता हूँ ..मगर जानती हो ... तुम उसकी याद दिलाती हो मुझे !
- अच्छा ?? कोई बात नहीं उदास मत हो मैं हूँ न !
और हम दोनों करीब आ गए थे।
और धीरे धीरे ... ये प्रेम का पौधा बरगद का स्वरूप ले चुका था मुझमें ...
मेरी नसों में ... सांसों में आंखो में .. आवाज़ .. कलम .. बस वही था हर तरह ... हर सूं !! ......
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और एक दिन जैसे मिला था ... वैसे दूर भी चला गया
......
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......
...दुख... दर्द ...कहा ...सहा ... फिर मौन हो गई ...
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और बरसो बाद...... एक दिन अचानक उसका इंटरव्यू पढ़ा
तो जाना कि उसकी कही हर बात झूठ थी .... सफ़ेद झूठ
....
सदमा लगा था बहुत बड़ा .....
और फिर एक हंसता खिलखिलाता मौन पहन लिया था मैंने
....
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एक अरसे बाद .... सखी ने पूछा था
काहे इतना हंसती हो ... खूब सज ती हो संवरती हो ...
फिर कहीं दिल लगा बैठी हो क्या ?
सखी : ओहो तो ये इश्क़ के after effects hai !!
कौन... कब ....कहां ....कैसे .... ओहो ...... उससे .??
Omg !! Of all , उससे ??
जानती हूं उसे ! पढ़े है उसके किस्से ... बड़ा मशहूर लेखक है वो !!
तुझे पता है वो एक लेखक है और कहानियाँ तलाश करता है ....
और लिखने से पहले उन्हें जिया करता है !
- तो ?
-तो क्या , तुम उसकी उन उपन्यासों के दो - तीन पन्नो में जगह पा गई !!
-और हां ...तुम फ़ेमस हो गई हो ...तुम्हे तो ख़ुश होना चाहिए !
- नहीं .... मैं किस्सा नहीं हूं ... कहानी नहीं बनने दूंगी खुद को ....किताबों को... उन पन्नों को जला दूँगी मैं !!!
-पन्नो को , किताबों को ही न? ये बताओ स्मृतियों का क्या करोगी ?
लोगों की बातों का क्या करोगी ??
...
-Literature फ़ेस्ट में..... साहित्य गोष्ठियों में चर्चे होंगे - critics पूछेंगे उनसे - इतनी दर्द भरी मन को छू जाने वाली कहानियाँ कैसे लिखी उन्होंने ?
तुम पे लिखे क़िस्सों के कहानियों के चर्चे होंगे ... दिन.... साल... महीने तक ..
-शायद तुम जैसी और कहानियाँ उसे कोई साहित्य पुरस्कार भी दिला दे !!!
- क्यों री ..... खुद को सखी बताती है मेरी
सहेली है न तू ..रो रही हूँ मैं उसके लिए .. मरने की कोशिश कर चुकी हूं .. तुझे रहम नहीं आता मुझ पे??
....
हाहाहाहाहा....बेवकूफ है तू ... तुझ जैसे लोग ही इन famous साहित्यकारों की शक्ति हो ...तुम्हरा प्रेम उनकी शक्ति है ...आज वे जहां आसीन है ... वो तुझ जैसी सैकड़ों लड़कियों की बदौलत है !
- अब सुन ! स्वर्णिम तो नहीं, काले अक्षर में तो लिखा गया तेरा तथाकथित प्रेम! तो यही सही!
अब यही प्रायश्चित है तेरा, अपनी ग़लतियों का ख़ामियाज़ा तो भुगतना होगा तुझे !!
मर्यादा भी तो तूने ही तोड़ी थी न !!
हाहाहाहाहा .....
सुबक ... सुबक ... सुबक ... सुबक !!
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