15 January 2019

आपाधापी

एक दौर चला है 
आपाधापी का 
मेरे ही भीतर 
मेरे भीतर जो घर था 
बेतरतीबी सा है अब 
हर सामान बिखरा पड़ा है 

मुझसे ही मेरे भीतर 
कई साँझ कई सवेरे 
उग आई है 
कँटीली झाड़ियों सी 
उन्ही में उलझ के 
लहलुहान सी हूँ ..
...

मेरे भीतर 
ज़ख़्म जो भरे है ...
वो अब भी हरे है !!


#मैं_ज़िंदगी

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