एक दौर चला है
आपाधापी का
मेरे ही भीतर
मेरे भीतर जो घर था
बेतरतीबी सा है अब
हर सामान बिखरा पड़ा है
मुझसे ही मेरे भीतर
कई साँझ कई सवेरे
उग आई है
कँटीली झाड़ियों सी
उन्ही में उलझ के
लहलुहान सी हूँ ..
...
मेरे भीतर
ज़ख़्म जो भरे है ...
वो अब भी हरे है !!
#मैं_ज़िंदगी
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