मैंने कभी
शमशान घाट नहीं देखे ..
नहीं देखा
वो मटके को फोड़ना
और परिक्रमा करना
चिता की
कभी नहीं देखा
लाशों को
भड़भड जलते हुए
हड्डियों को
खोपड़ी को चटकते हुए ...
कभी देखा नहीं उन्हें
देर तक जलते हुए ...
मगर ....
मैंने देखी है
ज़िंदा आँखे
ज़िंदा ख़्वाहिशें ...
ज़िंदा सपने
जो शनै शनै जलते है
ताउम्र ...
उनसे धुँआ नहीं ...
पानी बहता है ..
और ...
ये पानी ...
उस आग को
ताउम्र जलाए रखता है !!
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