30 May 2018

तेज़ाब


उस तेज़ाब से 
वो जल रही थी ..
उसका चेहरा 
जल रहा था ...
भौंहें, चमड़ी बाल 
सब झुलस रहे थे ...

वो तेज़ाब उसके 
हाथो में 
पैरों में 
ऊँगलियों में 
रिस रहा था 
पिघलते सीसे  सा
जल रहा  था कानों  में 
गलाने लगा था 
उन सभी हिस्सों को ...

दुर्गन्ध रही थी 
तीव्र दुर्गन्ध एक सड़ान्ध 
उसके जलते  गलते बदन से !!

उस तेज़ाब ने 
पीठ पेट 
सीना जाँघे ....
तमाम हिस्सों को 
जला दिया था 

वो चीख़ रही थी 
आर्तनाद कर रही थी 
आक्रांद कर रही थी 
मदद की गुहार लगा रही थी 
मगर ...
किसी को उसका 
जला शरीर नहीं दिखाई दिया 
किसी ने उसकी चीख़ें नहीं सुनी 
किसी ने भी नहीं !!

उसके भीतर की 
माँ ने भी नहीं 
उसके भीतर रह रही 
बेटी बहू सास 
चाची मामी नानी ...
किसी ने भी उसे जलते हुए ,
झुलसते हुए ,नहीं देखा 
किसी को उसका 
आर्तनाद सुनाई नहीं दिया 

मगर....
सुनाई भी कैसे देता ??
दिखाई भी कैसे देता कुछ !!
...
पुरुष और समाज के कहे 
तीखे शब्दों का तेज़ाब ..
गालीयाँ का तेज़ाब ..
कोसने वाला तेज़ाब ...
तरल कहाँ होता है

जब पुरुष और ये समाज 
अपना ग़ुस्सा 
अपना क्रोध 
अपनी नाक़ामियों का ज़हर 
शब्दों में उँडेलता है तो 
वो तेज़ाब बनता है 
वो तेज़ाब जो 
Aqua-regia से भी तेज़ 
और ख़तरनाक होता है 
हड्डियों को गला देने वाला 
शब्दों का तेज़ाब !

उस तेज़ाब में जली 
झुलसी तड़पतीं औरत के 
बदन से उठता धुआँ 
किसी को नहीं दिखता 
नहीं आती किसी को जले हुए 
दुर्गन्ध वाले तन की गंध 
और सुनाई नहीं देता 
किसी को वो मौन 
आर्तनाद !

क्यूँकि 
शब्द दिखाई नहीं देते
वो तेज़ाब दिखाई नहीं देता 
वो जला देता है 
और 
छोड़ जाता  है 
कभी भरने वाला ज़ख़्म
हरे मवाद वाला ज़ख़्म 
रिसता  हुआ  ज़ख़्म 
जिन पे  लोग मक्खियाँ 
से भिनभिनाते है 
कुरेदने के लिए !!

ये जानते  है सब कि
हर घर में 
हर औरत 
सदियों से जलती रही है 
झुलसतीं रही है 
इस तेज़ाब से ...
मगर विडम्बना है कि 
इस तेज़ाब फेंकने वाले को 
कोई सज़ा नहीं होती 
कोई सुनवाई नहीं होती 
क्यूँकि ये प्रथा है,
चलन है अदालतों का ...
कि सबूत हो 
तो हर अपराधी छूट जाता है !

काश ...काश ...
हर गाली 
हर बद्दुआ 
हर बुरा  लफ़्ज़ 
एक बदन होता 
और कोई तेज़ाब उन्हें भी 
औरत सा जला देता !








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