बादल पे पाँव मेरे,
सपने मैं देखूँ तेरे
सूझे न कुछ भी मुझको
अब तो साँझ और सवेरे,
अब तो साँझ और सवेरे,
कोई तो बताये मुझको
ये क्या हुआ रे ?
ख़ुद से ही करती हूँ मैं ,
दिन दिनभर कितनी बातें ...
आँखो ही आँखों में अब,
कटने लगी है रातें ...
देखो न पलकों में
तेरा
सपना सो गया रे ...
कोई तो बताये मुझको
ये क्या हुआ रे ?
तितली सी उड़
रही हूँ,
गुलशन में तेरे आ के
झरने सी बह रही हूँ,
दरिया तुझ को बनाके
मेरे फलक का तू ही
,
चाँद हो गया रे
कोई तो बताये मुझको
ये क्या हुआ रे ? संध्या राठौर
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