मटरगशती !!
बह रही वो ,
यूँ हीं सर्र सर्र ...
जाने कब से
किसलिए, क्यूँ ???
दिन की भट्ठी
सुलग उट्ठी
ख़्वाब रोटी
पतली मोटी
सिकी उसकी
तेरी तो जल गई धू धू !!!
हाहाहाहा ..हूहूहूह
हाहाहाहा ..हूहूहूह
हवा करती .... मटरगश्ती !!
शाम ग़ुमसुम !
करती कुनमुन ...
लेती छुट्टी ...
करती क़ुट्टि ...
मनाये चाँद
जैसे रूठी दुल्हन हो न्यू .....
हाहाहा ..हूहूहू
हाहाहा ..हूहूहू
हवा करती .... मटरगश्ती !!
बह रही वो ,
किसलिए, क्यूँ ???
बह रही वो ,
किसलिए, क्यूँ ???
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